💐 कुतर्की के प्रमाण ०१, ०२ एवं ०३ 💐
क्या कोई ऐसा प्रमाण है जिसमें द्रौपदी ने अपने को केवल एक की पत्नी कहा हो या अपने को युधिष्ठिर की पत्नी बताया हो ?
उत्तर:-
(1) द्रौपदी को कीचक ने परेशान कर दिया तो दुःखी द्रौपदी भीम के पास आई। उदास थी। भीम ने पूछा सब कुशल तो है? द्रौपदी बोली जिस स्त्री का पति राजा युधिष्ठिर हो वह बिना शोक के रहे, यह कैसे सम्भव है?
अशोच्यत्वं कुतस्तस्य यस्य भर्ता युधिष्ठिरः ।
जानन् सर्वाणि दुःखानि कि मां त्वं परिपृच्छसि ।।-(विराट १८/१)
द्रौपदी स्वयं को केवल युधिष्ठिर की पत्नी बता रही है।
(2) – वह भीम से कहती है – जिसके बहुत से भाई, श्वसुर और पुत्र हों,जो इन सबसे घिरी हो तथा सब प्रकार अभ्युदयशील हो, ऐसी स्थिति में मेरे सिवा और दूसरी कौन सी स्त्री दुःख भोगने के लिए विवश हुई होगी-
भ्रातृभिः श्वसुरैः पुत्रैर्बहुभिः परिवारिता ।
एवं सुमुदिता नारी का त्वन्या दुःखिता भवेत् ।।-(२०-१३)
द्रौपदी स्वयं कहती है उसके बहुत से भाई हैं, बहुत से श्वसुर हैं, बहुत से पुत्र भी हैं,फिर भी वह दुःखी है। यदि बहुत से पति होते तो सबसे पहले यही कहती कि जिसके पाँच-पाँच पति हैं, वह मैं दुःखी हूँ, पर होते तब ना ।
(3)- और जब भीम ने द्रौपदी को,कीचक के किये का फल देने की प्रतिज्ञा कर ली और कीचक को मार-मारकर माँस का लोथड़ा बना दिया तब अन्तिम श्वास लेते कीचक को उसने कहा था, “जो सैरन्ध्री के लिए कण्टक था,जिसने मेरे भाई की पत्नी का अपहरण करने की चेष्टा की थी, उस दुष्ट कीचक को मारकर आज मैं अनृण हो जाऊंगा और मुझे बड़ी शान्ति मिलेगी।”
अद्याहमनृणो भूत्वा भ्रातुर्भार्यापहारिणम् ।
शांति लब्धास्मि परमां हत्वा सैरन्ध्रीकण्टकम् ।।-(विराट २२-७९)
इस पर भी कोई भीम को द्रौपदी का पति कहता हो तो क्या करें? मारने वाले की लाठी तो पकड़ी जा सकती है, बोलने वाले की जीभ को कोई कैसे पकड़ सकता है ?
💐 कुतर्की के प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय प्रमाण का समाधान 💐
उपर्युक्त प्रमाणों में बड़ी ही हास्यास्पद बात है कि कितनी धूर्तता से इन्हीं प्रमाणों और प्रसङ्गों के आस पास वाले सभी श्लोकों को छिपा दिया गया है जिनसे द्रौपदी के पांच पति सिद्ध होते। अस्तु, हम कीचक आदि के प्रसङ्ग से ही द्रौपदी के पांचों पतियों का प्रमाण देते हैं।
सर्वप्रथम यह बात समझ लें कि पाँचों पाण्डव द्रौपदी के पति थे, जिनमें युधिष्ठिर का नाम भी आता है। युधिष्ठिर राजा थे, बड़े भाई थे,इसीलिए उनका नाम विशेष प्रधानता से लिया जाता है। युधिष्ठिर का द्रौपदी के पति के रूप में उल्लेख होना, मात्र यह सिद्ध करता है, कि वे द्रौपदी के पति थे। किंतु इससे यह सिद्ध नहीं होता है कि केवल वे ही द्रौपदी के पति थे। जैसे यदि किसी के चार पांच पुत्र हों, तो वह व्यक्ति प्रत्येक स्थान पर अपने सभी पुत्रों के नाम का परिचय नहीं देता, मात्र ज्येष्ठ पुत्र से भी उनके माता पिता जाने जाते हैं, किन्तु इसका अर्थ यह नहीं है कि शेष उसकी संतानें नहीं हैं। द्रौपदी के पांच पतियों में कहीं इच्छानुसार एक ही का वर्णन है, तो कहीं पांचों का। किन्तु यह वर्णन कहीं नहीं है कि केवल एक ही पति थे, शेष का निषेधवाक्य कहीं नहीं है। कुतर्की आक्षेपकर्ता ने श्लोकों के आधार पर मुख्यतः तीन बातें सिद्ध करने का प्रयास किया है –
१) द्रौपदी के एक ही पति थे, पांच नहीं।
२) वो एक पति राजा युधिष्ठिर ही थे, अन्य नहीं।
३) भीम ने द्रौपदी को अपने भाई की पत्नी कहा है, अपनी नहीं।
अस्तु, हम इन कुतर्कों का समाधान भी इन्हीं प्रसङ्गों एवं सम्वादों के माध्यम से करेंगे। जब कीचक द्रौपदी के साथ दुराचार की मंशा बना रहा था, उस समय उसके भय द्रौपदी ने देवताओं एवं पितरों से प्रार्थना की …
यथाऽहमन्यं पार्थेभ्यो नाभिजानामि मानवम्।
तेन सत्येन मां दृष्ट्वा कीचको मा वशं नयेत्॥
यथाऽहं पाण्डुपुत्रेभ्यः पञ्चभ्यो नान्यगामिनी।
तेन सत्येन मां दृष्ट्वा कीचको मा वशं नयेत्॥
(महाभारत, विराटपर्व, अध्याय – १८, श्लोक – ५५-५६)
चूंकि मैं कुन्तीपुत्रों के अतिरिक्त किसी और मानव को नहीं जानती हूँ, इस सत्य के प्रभाव से मुझे देखने के बाद कीचक मुझे अपने वश में न कर सके। चूंकि मैं पांचों पांडवों के अतिरिक्त किसी और का अनुसरण नहीं करती हूँ, उस सत्य के प्रभाव से मुझे देखने के बाद भी कीचक मुझे अपने वश में न कर सके।
(सती स्त्री अपने पति के अतिरिक्त किसी और को नहीं जानती, यह उक्ति प्रसिद्ध है। यहां “नहीं जानने” का अर्थ पतिभाव से नहीं जानना है। यह भी प्रसिद्ध है कि सती स्त्री अपने पति का ही अनुसरण करती है।)
जब राजा विराट की सभा में कीचक ने द्रौपदी को लात से मारा था, तब राजा को उसे दण्ड न देता हुआ देख कर द्रौपदी ने निम्न वचन कहे थे। इस सभी श्लोकों में अपने पति के सन्दर्भ में मात्र बहुवचन का ही प्रयोग है जो अनेकों पतियों के स्पष्ट निर्देश करता है।
येषां न वैरी स्वपिति पदा भूमिमुपस्पृशन्।
तेषां मां मानिनीं भार्यां सूतपुत्रः पदाऽवधीत्॥
ये च दद्युर्न याचेयुर्ब्रह्मण्याः सत्यवादिनः।
येषां दुन्दुभिनिर्घोषो ज्याघोषः श्रूयते भृशम्।
तेषां मां दयितां भार्यां सूतपुत्रः पदाऽवधीत्॥
तेजस्विनस्तथा क्षान्ता बलवन्तश्च मानिनः।
महेष्वासा रणे शूरा गर्विता मानतत्पराः।
तेषां मां मानिनीं भार्यां सूतपुत्रः पदाऽवधीत्॥
जिन लोगों के भूमि पर पैर रख देने मात्र से वैरियों की नींद समाप्त हो जाती है, उन्हीं लोगों की सम्माननीया पत्नी को आज इस सूतपुत्र ने पैरों से मारा है। जिन्होंने आजतक केवल दिया है, कभी किसी से मांगा नहीं, जो ब्राह्मणभक्त एवं सत्यवादी हैं, जिनकी दुंदुभि एवं धनुष की टंकार का घोष बारम्बार सुनाई पड़ता है, उन्हीं लोगों की सम्माननीया पत्नी को आज इस सूतपुत्र ने पैरों से मारा है। जो तेजस्वी हैं, क्षमाशील हैं, बलवान् एवं स्वाभिमानी हैं। विशाल धनुष को धारण करने वाले, युद्ध में वीरता का प्रदर्शन करने वाले, गर्व से भरे हुए एवं सम्मान हेतु तत्पर रहते हैं, उन्हीं लोगों की सम्माननीया पत्नी को आज इस सूतपुत्र ने पैरों से मारा है।
सर्वलोकमिमं हन्युर्यदि क्रुद्धा महाबलाः।
तेषां मां दयितां भार्यां सूतपुत्रः पदाऽवधीत्॥
येषां नास्ति समः कश्चिद्वीर्ये सत्ये बले दमे।
तेषां मां दयितां भार्यां सूतपुत्रः पदाऽवधीत्॥
येषां न सदृशः कश्चिद्धनाद्यैर्भुवि मानवः।
तेषां मां दयितां भार्यां सूतपुत्रः पदाऽवधीत्॥
(महाभारत, विराटपर्व, अध्याय – २०, श्लोक – १७-२२)
जो लोग क्रुद्ध होने पर सभी लोकों का नाश कर सकते हैं, उन्हीं लोगों की समर्पिता पत्नी को आज इस सूतपुत्र ने पैरों से मारा है। पराक्रम, सत्य, बल, सहनशक्ति में जिनके समान दूसरा कोई नहीं है, उन्हीं लोगों की समर्पिता पत्नी को आज इस सूतपुत्र ने पैरों से मारा है। धन आदि में भी जिनके समान इस संसार में दूसरा कोई मनुष्य नहीं है, उन्हीं लोगों की समर्पिता पत्नी को आज इस सूतपुत्र ने पैरों से मारा है।
इस प्रकार सिद्ध होता है कि द्रौपदी के कई पति थे, जो पांच पाण्डव ही थे, यह सर्वविदित है। जब बारम्बार विरोध करने पर भी कीचक का अनाचार नहीं रुका तो द्रौपदी ने कीचक की बहन महारानी सुदेष्णा को निम्न बात कहते हुए चेतावनी दी है –
भ्रातुः प्रयच्छ त्वरिता जीवच्छ्राद्धं त्वमद्य वै।
सुहृष्टं कुरु वै चैनं नासून्मन्ये धरिष्यति॥
तेषां हि मम भर्तॄणां पञ्चानां धर्मचारिणाम्।
एको दुर्धषणोऽत्यर्थं बले चाप्रतिमो भुवि॥
निर्मनुष्यमिमं लोकं कुर्यात्क्रुद्धो निशामिमाम्।
न स संक्रुध्यते तावद्गन्धर्वः कामरूपधृत्॥
नूनं ज्ञास्यति यावद्वै ममैतत्पादघातनम्।
तत्क्षणात्कीचकः पापः सपुत्रभ्रातृबान्धवः।
विनशिष्यति दुष्टात्मा यथा दुष्कृतकर्मकृत्॥
(महाभारत, विराटपर्व, अध्याय – २०, श्लोक – ७१-७४)
तुम अपने भाई के जीवित रहते ही, शीघ्र उसका श्राद्ध कर डालो। उसके मन को प्रसन्न लगने वाले कृत्य भी कर दो, क्योंकि वह अधिक समय तक अपने प्राणों को धारण नहीं कर पायेगा, ऐसा मैं समझती हूँ। धर्म का आचरण करने वाले मेरे पांच पतियों में से एक, जिसका बलः अत्यंत भीषण है, जिसकी कहीं कोई तुलना नहीं है, वह आज की रात्रि को क्रोधित होकर इस स्थान को मनुष्यहीन कर देगा। इच्छानुसार रूप धारण करने वाला वह गंधर्व जब तक क्रोधित नहीं होता है (तभी तक कीचक सकुशल है)। मेरे ऊपर जो कीचक ने लात से प्रहार किया है, उसे वह (गंधर्व) शीघ्र ही जान जाएगा और जब ऐसा होगा उसी समय दुष्कृत्य करने वाला वह पापी कीचक अपने पुत्र, भाई एवं बांधवों के साथ नष्ट हो जाएगा।
यहां ध्यान देने की बात है कि अज्ञातवास के समय पांडवों ने अपना वास्तविक नाम, गुण एवं स्वरूप छिपा रखा था। द्रौपदी भी सैरंध्री बनकर रहती थी एवं राजा विराट के महल में अर्धसत्य बोलते हुए अपने आप को पांच गंधर्वों की पत्नी बताया था। इसके बाद वह भीमसेन के कक्ष में सहायता मांगने के लिए चली गयी और वहां उन्होंने जो व्यवहार किया, उससे सिद्ध हो जाएगा कि द्रौपदी भीमसेन की भी पत्नी थीं।
अभिप्रसार्य बाहुभ्यां पतिं सुप्तं समाश्लिषत् ।
सुजातं गोमतीतीरे सालं वल्लीव पुष्पिता॥
परिस्पृस्य च पाणिभ्यां पतिं सुप्तमबोधयत्।
श्रीरिवान्या महोत्साहं सुप्तं विष्णुमिवार्णवे ।
क्षौमावदाते शयने शयानं वृषभेक्षणम्॥
यथा शची देवराजं रुद्राणी शंकरं यथा।
ब्रह्माणमिव सावित्री देवसेना गुहं यथा॥
दिशागजसमाकारं गजं गजवधूरिव।
भीमं प्राबोधयत्कान्ता लक्ष्मीर्दामोदरं यथा॥
(महाभारत, विराटपर्व, अध्याय – २२, श्लोक – ०८-११)
(द्रौपदी ने भीमसेन के कक्ष में जाकर) अपने सोये हुए पति का बाहें फैलाकर आलिंगन किया, जैसे गोमती नदी के किनारे उत्पन्न साल वृक्ष का फूलों से भरी हुई लता आलिंगन करती है। उस (द्रौपदी) ने अपने हाथों से स्पर्श करके वृषभ के समान विशाल नेत्रों वाले सोये हुए पति (भीमसेन) को रेशमी गद्दों के ऊपर से जगाया, जैसे क्षीरसागर में सोए हुए भगवान् विष्णु को देवी लक्ष्मी जगाती हैं। जैसे देवी शची देवराज इन्द्र को, देवी पार्वती भगवान् शिव को, देवी सावित्री ब्रह्मदेव को एवं देवसेना स्वामिकार्तिकेय को जगाती हैं। जैसे दिग्गजों को उनकी गजवधू जगाती है, जैसे देवी लक्ष्मी भगवान् विष्णु को जगाती हैं, वैसे ही उस पत्नी (द्रौपदी) ने भीमसेन को जगाया।
इसके आगे भीमसेन एवं द्रौपदी में सम्वाद हुआ। इस सम्वाद के प्रथम श्लोक को तो आक्षेपकर्ता ने उल्लिखित करते हुए युधिष्ठिर को द्रौपदी का पति सिद्ध कर ही दिया किन्तु इसी सम्वाद के अंतिम श्लोक को भी यदि उल्लिखित करता तो साथ साथ ही, द्रौपदी के ही वचन से उनके पांचों पतियों की सिद्धि हो जाती। वह अंतिम श्लोक है,
एकभर्ता तु या नारी सा सुखेनैव वर्तते।
पञ्च मे पतयः सन्ति मम दुःखमनन्तकम्॥
(महाभारत, विराटपर्व, अध्याय – २२, श्लोक – १२५)
द्रौपदी कहती हैं – जिस स्त्री का एक ही पति हो, वह सुख से ही रहती हैं। मेरे तो पांच पति हैं, फिर भी मेरा दुःख अनंत है।
इसी सम्वाद के प्रथम श्लोक का उदाहरण देते हुए आक्षेपकर्ता ने केवल युधिष्ठिर को ही द्रौपदी का पति बताया है, आईये उसकी भी समीक्षा करते हैं –
अशोच्यता कुतस्तस्या यस्या भर्ता युधिष्ठिरः।
जानन्सर्वाणि दुःखानि किं मां भीमानुपृच्छसि॥
हे भीम ! जिसके पति युधिष्ठिर हों, वह कैसे चिंतामुक्त हो सकती है, मेरे सभी दुःखों को जानते हुए भी तुम क्या पूछते हो ?
यहां युधिष्ठिर का नाम इसीलिए आया है क्योंकि आप इस पूरे सम्वाद को देखें तो द्रौपदी ने दुःखी होकर पांडवों एवं उसकी स्वयं की दुर्गति का कारण युधिष्ठिर को ही बताया है। द्रौपदी के अनुसार युधिष्ठिर के द्यूतक्रीड़ा के कारण ही बाकी सबों को इतना कठोर कष्ट भोगना पड़ता था, इसीलिए द्रौपदी ने क्रोधित होकर कहा कि जिसके पति युधिष्ठिर हों, वह सुखी कैसे रह सकती है ?
बीच में सैरंध्री का रूप धारण करके अज्ञातवास करने वाली द्रौपदी ने कीचक को चेतावनी देते हुए कहा था –
गन्धर्वाणामहं भार्या पञ्चानां महिषी प्रिया ।
ते त्वां निहन्युर्दुर्धर्षाः शूराः साहसकारिणः॥
द्रौपदी ने कहा – मैं पांच गंधर्वों की प्रिय भार्या हूँ। वे अपराजित, साहसी और पराक्रमी (गंधर्व) तुम्हें मार डालेंगे।
एवमुक्तस्तु दुष्टात्मा कीचकः प्रत्युवाच ह।
नाहं बिभेमि सैरन्ध्रि गन्धर्वाणां शुचिस्मिते॥
(महाभारत, विराटपर्व, अध्याय – २४, श्लोक – ३७-३८)
द्रौपदी की बात सुनकर दुष्टात्मा कीचक ने कहा – हे पवित्र मुस्कान वाली सैरंध्री ! मैं गंधर्वों से नहीं डरता हूँ।
कीचक से द्वंद्वयुद्ध के समय भी भीमसेन ने इस बात की पुनः पुष्टि की …
निराबाधा त्वयि हते सैरन्ध्री विचरिष्यति।
सुखमेव चरिष्यन्ति सैरन्ध्र्याः पतयः सदा॥
(महाभारत, विराटपर्व, अध्याय – २६, श्लोक – २१)
भीम ने कीचक से कहा – तुम्हारे मारे जाने पर सैरंध्री (द्रौपदी) बिना बाधा के विचरण करेगी। उसके पति (यहां पतयः, बहुवचन शब्द है) भी सदा सुख से रहेंगे।
कीचक के मारे जाने पर द्रौपदी ने उसके भाईयों को यही कहा था कि परस्त्री की कामना करने वाला यह कीचक मेरे गंधर्व पतियों के द्वारा मारा गया –
कीचको निहतः शेते गन्धर्वैः पतिभिर्मम।
परस्त्रीकामसंतप्तं समागच्छन्त पश्यत॥
जब कीचक के मारे जाने पर उसके भाई, उपकीचकों ने द्रौपदी को जीवित जलाने का षड्यंत्र किया तो द्रौपदी ने कूट शब्दों में अपने पतियों को पुकारा था –
जयो जयेशो विजयो जयत्सेनो जयद्बलः।
त मे वाचं विजानन्तु सूतपुत्रा नयन्ति माम्॥
(महाभारत, विराटपर्व, अध्याय – २७, श्लोक – १९)
जय, जयेश, विजय, जयत्सेन और जयद्बल मेरी इस वाणी को सुनकर जान जाएं कि सूत्रपुत्र मुझे उठाकर ले जा रहे हैं।
पांडवों ने अपने गुप्त नामों के माध्यम से आपसी संवाद करने का निश्चय किया था ताकि उनकी वास्तविकता किसी को ज्ञात न हो। युधिष्ठिर का नाम जय था, क्योंकि वे धर्मावतार थे, यतो धर्मस्ततो जयः। ऐसे ही अर्जुन का नाम विजय था। अर्जुन ने अपने सातवें नाम, विजय की परिभाषा बाद में विराटपुत्र उत्तर को बताई थी। ऐसे ही सबों के गुप्त नाम थे।
इस पर भी कोई भीम को द्रौपदी का पति ‘नहीं’ कहता हो तो क्या करें ? मारने वाले की लाठी तो पकड़ी जा सकती है, बोलने वाले की जीभ को कोई कैसे पकड़ सकता है ? साथ ही द्रौपदी को भीमसेन से सुतसोम नामक पुत्र की प्राप्ति भी हुई थी।