Home खण्डन मण्डन हिन्दू धर्म पर लगे वामपंथी आरोपों का उत्तर

हिन्दू धर्म पर लगे वामपंथी आरोपों का उत्तर

3606
प्रश्न १३ – हिंदुओं में बलात्कारियों के प्रमाण अधिक क्यों होते हैं ?
उत्तर १३ – हिंदुओं के किसी ग्रंथ में बलात्कार का समर्थन नहीं है। यदि किसी ने मोहवश ऐसा किया भी, तो भले ही वह देवता हो, उसे कठोर दण्ड दिया गया, ऐसा भी वर्णन है। हमारे यहां सामाजिक या धार्मिक, किसी भी रूप से बलात्कार और बलात्कारी का समर्थन नहीं है। बलात्कार की कुधारणा हिंदुओं की है ही नहीं।
आज के कानून में भी देख लें कि गैर हिन्दू, अथवा धर्म मे आस्था न रखने वाले लोगों की संख्या ही ही बलात्कारियों की सूची में सबसे अधिक है। यह केवल भारत ही नहीं, पूरे विश्व की समस्या है। जब से इस देश में म्लेच्छों का आक्रमण हुआ, तब से ही ऐसे मामले बढ़े हैं। गैर हिन्दू लोग तो अपने सगे सम्बन्धी और पुत्री, बहन, भतीजी, पोती, सास, बहू आदि से भी व्यापक बलात्कार करते हैं, जो सर्वविदित है। आज भी देख लें कि किसी हिन्दू ने यदि बलात्कार किया है तो उसके समर्थन में हिन्दू समाज खड़ा नहीं होता, उसका या उसके परिवार का सामाजिक बहिष्कार होता है। जबकि गैर हिन्दू बलात्कारियों को गिरफ्तार करने के लिए गयी हुई पुलिस पर उस बलात्कारी के समुदाय वाले पत्थरबाजी करते हैं, तहर्रुश गेमिया के नामपर एकजुट होकर बलात्कार करते हैं और बलात्कारी को आर्थिक सहायता भी देते हैं।
प्रश्न १४ – शिव के लिंग (पेनिस) की पूजा क्यों करते हैं ? क्या उनके शरीर में कोई और चीज़ पूजा के क़ाबिल नहीं ?
उत्तर १४ – लिंग इतना ही बुरा है तो आशा है कि तुम्हारे जैसे प्रबुद्ध व्यक्ति ने उसे अभी तक काट कर फेंक दिया होगा। लिंग का अर्थ चिह्न, प्रतीक, लक्षण आदि होता है एवं व्यापकता में यही भाव भी है। विष्णु के चरण, ब्रह्मा का मस्तक एवं शिव का लिंग पूज्य हैं। पूर्वकाल में ब्रह्मा एवं विष्णु के मध्य हुए लीला विवाद में एक दिव्य ज्योति:पुंज लिंगाकृति में प्रकट हुआ था जिसके माहात्म्य को जानने के बाद सबों ने उसकी पूजा की। यह कोई स्थूल जननेन्द्रिय नहीं है, अपितु दिव्य ज्ञान एवं ऊर्जा का अनंत प्रवाह है। ब्रह्माजी ने ब्राह्मी लिपि के दिव्याक्षरों से इसकी पूजा की थी।
ब्रह्मा ब्रह्माक्षरैर्दिव्यैर्लिङ्गं पूजयते सदा।
(शिवधर्म उपपुराण)
साथ ही बताया गया है कि आकाश को ही लिंग, एवं पृथ्वी को उसका आधार बताया गया है, जिसके मध्य सभी प्राणी निवास करते हैं।
आकाशं लिङ्गमित्याहु: पृथिवी तस्य पीठिका।
उसी आकाशधरामण्डल का जीवनीय प्रारूप शिवलिंग के प्रतीक में हम पूजते हैं। किन्तु चूंकि तुमने प्रश्न में लिंग का स्पष्ट भाव जननेन्द्रिय से रखा है, इसीलिए मैं उसी दृष्टिकोण से उत्तर दूंगा। हम शिवलिंग की पूजा इसीलिए करते हैं क्योंकि ऐसा ही ब्रह्मा जी का आदेश है।
लिङ्गं यत्पतितं तस्य देवदेवस्य शूलिनः।
पूजयध्व प्रसन्नेन मनसा परमेश्वरम्॥
(वारुणोपपुराण, अध्याय – ०८, श्लोक – १८)
शूलधारी देवाधिदेव शिव जी का यह लिंग, जो गिरा है, आप सब उस निमित्त प्रसन्न मन से उन परमेश्वर का पूजन करें।
अब प्रश्न करेंगे कि शिवलिङ्ग क्यों गिरा था एवं उसके पूजन की बात क्यों आयी, तो उसके लिए एक कथा संक्षिप्त रूप से बताता हूँ। यह कथा स्कन्दपुराण के नागरखण्ड के पहले ही अध्याय में मिल जाएगी, मैं केवल मुख्य मुख्य श्लोक दे रहा हूँ।
हरस्य पूज्यते लिंगं कस्मादेतन्महामते।
विशेषात्संपरित्यज्य शेषांगानि सुरासुरैः॥
ऋषियों ने पूछा – सभी देवताओं एवं असुरों के द्वारा शिवजी के शरीर के अन्य अंगों को छोड़कर विशेषतः लिंगभाग की ही पूजा क्यों होती है ?
इसका उत्तर दिया गया – एकबार शिवजी ने विरक्त भाव का प्रदर्शन करते हुए भिक्षा की लीला की। अब शिव जी तो अवधूत वेश वाले ठहरे, योगी हैं, मोह माया से परे तो दिगम्बर रूप में ही, बिना वस्त्र के ही भिक्षाटन के उद्देश्य से चल पड़े। कुछ समय बाद एक वन में ऋषियों के आश्रम के समीप जाकर भिक्षा की याचना की।
अथ ते मुनयो दृष्ट्वा तं तथा विगतांबरम्।
कामोद्भवकरं स्त्रीणां प्रोचुः कोपारुणेक्षणाः॥
यस्मात्पाप त्वयास्माकमाश्रमोऽयं विडंबितः।
तस्माल्लिंगं पतत्वाशु तवैव वसुधातले॥
शिव जी के उस अद्भुत दिगम्बर वेश को देखकर ऋषिपत्नियाँ काममोहित हो गईं। इस बात से ऋषियों को क्रोध हो गया। (वे भूल गए कि समस्त पुरुषों में शिव तथा स्त्रियों में शक्तितत्व निहित है एवं) उन्होंने शिव जी को श्राप दे दिया कि आपके इस अशोभनीय वेश और उसके परिणाम से उत्पन्न पापकारी कृत्य से हमारा आश्रम भ्रष्ट हो गया है, अतः आपका यह लिंग तुरन्त पृथ्वी पर गिर जाए।
ऋषियों के श्राप से वैसा ही हुआ। उस समय उस लिंग की ऊर्जा को धारण करने में पृथ्वी समर्थ न हो सकी, सो वह भेदन करता हुआ, पाताल में स्थित हो गया। इसके बाद सृष्टि में ऊर्जा का भयंकर असंतुलन हुआ जिससे प्रलय की स्थिति आ गयी।
संधारय पुनर्लिंगं स्वकीयं सुरसत्तम॥
नोचेज्जगत्त्रयं देव नूनं नाशममुपेष्यति।
ब्रह्माजी ने देवगणों के साथ आकर शिव जी से प्रार्थना की, हे देवश्रेष्ठ ! आप अपने लिंग को पुनः धारण कर लें, अन्यथा निश्चय ही तीनों लोकों का नाश हो जाएगा। शिव जी ने एक शर्त रखी।
अद्यप्रभृति मे लिंगं यदि देवा द्विजातयः।
पूजयन्ति प्रयत्नेन तर्हीदं धारयाम्यहम्॥
आज के बाद यदि सभी देवता, ऋषि आदि प्रयत्नपूर्वक मेरे लिंग का पूजन करेंगे तो ही मैं इसे पुनः धारण करूँगा।
फिर ब्रह्मा जी ने पाताल में जाकर शिवलिङ्ग की विधिवत् पूजा की, एवं सब कुछ सामान्य हुआ।
एतस्मात्कारणाल्लिंगं पूज्यतेऽत्र सुरासुरैः।
हरस्य चोत्तमांगानि परित्यज्य विशेषतः॥
यही कारण है कि शिवलिंग की, बाकी शिवांगों से विशेष प्रधानता है। (वैसे हमलोग पञ्चवक्त्र पूजन में मुख की प्रधानता से भी पूजन करते हैं।)
(स्कन्दपुराण, नागरखण्ड, अध्याय – ०१)
प्रश्न १५ – खजुराहो के मंदिरों में काम-क्रीड़ा और उत्तेजक चित्र हैं, फिर ऐसे स्थान को मंदिर क्यों कहा जाता है ? क्या काम-क्रीडा, हिन्दू धर्मानुसार पूजनीय है ?
उत्तर १५ – निःसन्देह हिंदुओं में काम क्रीड़ा पूजनीय है। भला तुमने कैसे जन्म लिया ? पेड़ से तोड़े गए थे या डाऊनलोड हुए थे ? केवल देवालय को ही मन्दिर कहते हैं ऐसी बात नहीं है। शब्दकल्पद्रुम आदि में मन्दिर शब्द की परिभाषा है –
मन्दन्ते मोदन्ते लोका यत्र …
मन्द्यते सुप्यतेऽत्र मन्द्यते स्तूयते इति वा …
जहां जाने से लोग प्रसन्न हो जाये, सो जाएं या शांतचित्त होकर स्थिर हो जाएं, उसे मन्दिर कहते हैं। इसीलिए सामान्य घर को भी मन्दिर कहते हैं, क्योंकि वहां आप विश्राम करते हैं।
कामदेव को विष्णु का अंश कहते हैं।
धर्माविरुद्धो भूतेषु कामोऽस्मि भरतर्षभ।
(श्रीमद्भगवद्गीता)
धर्मसम्मत काम को भगवान् का ही अंश बताया गया है, क्योंकि वह गृहस्थ आश्रम एवं लोकविस्तार का आधार है। नंदीश्वर को भगवान् शिव ने कामशास्त्र का उपदेश किया था जो परम्परा से वात्स्यायन ऋषि के पास आया और उन्होंने कामसूत्र की रचना की। राजा पुरूरवा ने उर्वशी से देवकाम सीखकर कामकुंजलता की रचना की। शास्त्रसम्मत काम क्रीड़ा मान्य है।
स्वामी कार्तिकेय के विवाह के बाद देवताओं ने उन्हें उपहार दिये जिनमें कामशास्त्र भी था।
कामशास्त्रं कामदेवो ददौ तस्मै मुदाऽन्वितः॥
(ब्रह्मवैवर्त पुराण, गणपतिखण्ड अध्याय – १७, श्लोक – १२)
वेदों में भी काम की महिमा उसकी लोकधारण शक्ति के कारण बताई गई है।
कामो दाता कामः प्रतिग्रहीता कामः समुद्रमाविवेश।
कामेन त्वा प्रति गृह्णामि कामैतत्ते
(अथर्ववेद, काण्ड – ०३, सूक्त – २९, मन्त्र – ०७)
खजुराहो के मंदिर भी कामशास्त्र को समर्पित हैं, किन्तु लोक में बहुतों के लिए अनुपयुक्त होने से इन्हें निर्जन वन, गुफाओं में बनाया गया है, ये अलग बात है कि संसार में जनसंख्या की भीड़ बढ़ने से ये समाज के सामने प्रकट हो गए। ये मन्दिर इस बात को भी दिखाते हैं कि कलियुग में लोग केवल कामशास्त्र पर ही आश्रित हो जाएंगे।
वस्तुतः उपर्युक्त सभी प्रश्न, बिना स्वस्थ अध्ययन या चिंतन के, मात्र अपना क्षोभ व्यक्त करने एवं सनातन धर्म पर आक्षेप करके अपना राजनीतिक स्वार्थ सिद्ध करने के उद्देश्य से खड़े किए गए हैं, तथा ऐसे प्रश्नों को देशद्रोही शक्तियां ही प्रायोजित करती हैं।
श्रीमन्महामहिम विद्यामार्तण्ड श्रीभागवतानंद गुरु
His Holiness Shri Bhagavatananda Guru