Home धर्म निर्णय क्या रावण की जय अथवा जय लंकेश बोलना चाहिए ?

क्या रावण की जय अथवा जय लंकेश बोलना चाहिए ?

3189

जय लंकेश (रावण) का उद्घोष अनुचित है।

सर्वप्रथम तो देखा जाय, जय किसकी होती है ? यतो धर्मस्ततो जयः। जहां धर्म है, जय भी वहीं है।

धर्म कौन हैं ?
रामो विग्रहवान् धर्म: । श्रीराम जी स्वयं धर्म की साकार मूर्ति हैं।
और ?
वृषो हि भगवान् धर्म:। नंदीश्वर भी धर्म का ही स्वरूप हैं।
और ?
धर्म: स्वयं तु संजातो लङ्कायां हि विभीषण:। विभीषण के रूप में लंका में साक्षात् धर्म ने ही अवतार लिया है !

जिसने साक्षात् धर्मरूपी श्रीराम जी का अपमान किया, सीताहरण जैसा कुकृत्य किया, जिसे स्वयं धर्मरूपी नंदीश्वर ने श्राप दे दिया, जिसने स्वयं धर्मरूपी विभीषण का अपमान किया, उसे धर्म के कारण मिलने वाली जयजयकार का अधिकारी कैसे माना जा सकता है ?

विभीषण ने रावण को नहीं त्यागा, रावण ने विभीषण को अपमानित करके निकाला था क्योंकि रावण में कल्याणकारी सलाह को सुनने का सामर्थ्य नहीं था। इसीलिए धर्मावतार विभीषण जी अपने प्रभु श्रीराम जी के पास चले गए। क्यों गए ?
आचारप्रभवो धर्म: धर्मस्य प्रभुरच्युत:। सदाचार के प्रधानता से ही धर्म है और उसके स्वामी श्रीभगवान् स्वयं हैं। रावण आचारहीन होने से धर्महीन हो चुका था, उसने स्वयं धर्म का परित्याग किया अतएव धर्मदेव अपने प्रभु के पास चले गए।

आपको रावण की जयजयकार करनी ही क्यों है ? उसमें ऐसा क्या था ?

ज्ञान ?
फिर आप उसके दादा ऋषि पुलस्त्य की जयजयकार क्यों नहीं करते ? क्योंकि आपको राजनीतिक दुराग्रह सिद्ध करना है।

वो वर्ण से ब्राह्मण था ?
फिर आप वर्ण और गुण दोनों के आधार पर श्रेष्ठता के उच्चतम स्तर पर स्थित उसके पिता विश्रवा की जयजयकार क्यों नहीं करते ? क्योंकि आपको राजनीतिक दुराग्रह सिद्ध करना है।

तपस्या ?
फिर आप उसके भाई विभीषण की जयजयकार क्यों नहीं करते, आखिर उन्होंने भी ब्रह्मदेव को संतुष्ट करके वरदान पाया था। वो चाहते तो रावण जैसा पराक्रम भी मांग सकते हैं किंतु उन्होंने केवल भक्ति और धर्म ही मांगा, और इस बात से ब्रह्मा जी इतने गद्गद हुए कि अपनी ओर से कृपा करते हुए बिना मांगे ही विभीषण जी को ब्रह्मास्त्र तक दे दिया। यहां तक कि प्रातःस्मरणीय चिरंजीवी एवं महाभागवत दिव्यों की शृंखला में विभीषण जी का नाम लेने का निर्देश शास्त्रों में है। फिर उनकी जयजयकार क्यों नहीं करते आप ? क्योंकि आपको राजनीतिक दुराग्रह सिद्ध करना है।

शिवभक्ति ?
फिर आप उसके भाई यक्षराज कुबेर की जयजयकार क्यों नहीं करते, जो अपनी शिवभक्ति से भगवान् शिव के स्थायी सखा और पार्षद बन गए ? वैसे भी कुबेर जी का तेज देखकर ही रावण को ईर्ष्या हुई और उसने तपस्या प्रारम्भ की थी। कुबेर जी की जयजयकार क्यों नहीं ? क्योंकि आपको राजनीतिक दुराग्रह सिद्ध करना है।

रावण के परिवार में ही इतने गुणी जन थे, उनको छोड़कर भला रावण की जयजयकार ही क्यों ? वैसे भी असली लंकेश तो विभीषण जी ही हैं क्योंकि उन्होंने रावण की मूर्खता के कारण लंका पर आई विपत्ति से पुरजनों की रक्षा की थी, उन्हें साक्षात् भगवान् ने लंकेश बनाया। जयजयकार तो केवल प्रभु श्रीराम या उनके भक्तों की ही हो सकती है, अधर्म के पक्ष की कदापि नहीं।

श्रीमन्महामहिम विद्यामार्तण्ड श्रीभागवतानंद गुरु
His Holiness Shri Bhagavatananda Guru