आजकल मृत हिन्दू ऐसे प्रश्न पूछ रहे हैं जैसे गूगल में खोजा, तैयार उत्तर मिल गया, और इतिश्री। ये विषय ऐसा नहीं है। आप दनादन पूछते रहते हैं। मानव मन की जिज्ञासा है, और उचित जिज्ञासा है। अब वस्तुनिष्ठ प्रश्न के उत्तर तो तुरंत दिए जा सकते हैं, लेकिन सैद्धांतिक प्रश्नों के उत्तर सामने बैठ का चर्चा करते हुए, सोदाहरण समझाए जाते हैं। आप दिन भर इधर उधर व्यस्त रहेंगे, कभी स्वयं से ग्रंथों का अवलोकन नहीं करेंगे, फिर शाम को एक बार एक घण्टे दस बीस प्रश्न पूछ कर ज्ञानप्राप्ति का प्रयास करेंगे तो यह मार्ग न सही है और न कारगर। जिन बातों को कई ग्रंथ पढ़कर, गुरुमुख से ध्यान पूर्वक सुनकर, मनन कर समझना होता है, वो इतने ही आसानी से एक पंक्ति में लिखकर दे दिए जा सकते थे तो ऋषिगणों ने इतना क्लेश क्यों सहन किया ? हद तो तब होती है कि कल्पित गुरुओं के अन्धशिष्यों के प्रति, कोई शास्त्र में कही बातों को बस हिंदी अनुवाद के साथ उनके सामने रखता जाए, और उन बातों से उनके मत का खंडन होता हो तो धमकी देने लगेंगे। स्वयं ही शास्त्र को गलत बताने लगेंगे और अपने को, एवं अपने गुरुओं को निर्विवाद ब्रह्मवेत्ता …
इसीलिए कहता हूँ, पहले ग्रंथ पढिये। आपके मन में जो सवाल आते हैं, वो पहले भी मानव के मन मे आते रहे हैं। और उनका समाधान भी ऋषियों ने करके ग्रंथ में डाल दिया है। आप कोई नए नहीं हैं। ये सब बहुत गंभीर विषय हैं, ऐसे उत्तर नहीं मिलता। पहले ग्रंथ पढ़ें। फिर समझ में न आये तो पूछें। हां, यदि यह ज्ञात नहीं कि कौन से प्रश्न का उत्तर कहाँ मिलेगा, तो मैं अवश्य सहायता करके उचित ग्रंथ या गुरु का सन्दर्भ दूंगा।
पढ़ने के बाद कोई विषय समझ न आये या प्रति शंका उत्पन्न हो जाये तो भी मैं समाधान बताऊंगा। परंतु यदि आप यह चाहते हैं कि दिन भर भोजन, वाणी, परिवेश एवं विचारों के धार्मिक निर्देशों की धज्जी उड़ाकर सन्ध्या को मुझसे गूढ़ विषयों पर प्रश्न करें, तो यह ध्यान रहे कि ज्ञान पात्र को दिया जाता है, एवं यह पात्रता नहीं है। अतः आज से मैं केवल आपको ये बताऊंगा कि कौन सा विषय कहाँ मिलेगा। यदि आप वास्तव में जिज्ञासु हैं, और ज्ञान के अधिकारी हैं, तो स्वयं परिश्रम करके ज्ञान अर्जन करें। मैं उसके बाद ही सहायता करूँगा। मेरे मत में समस्त व्यासपीठ, धर्मपीठ एवं समानांतर धर्माधिकारी समुदाय को यह बात समाज में व्यावहारिक धरातल पर समझानी चाहिए कि ग्रंथ एवं गुरु के समायोजन से ही गोविंद का रहस्य समझ आ सकता है अन्यथा हिन्दू समाज का यह संक्रमण उपेक्षा मृत्युदायी रोग बड़ी विकट स्थिति का बीजारोपण करेगा।
ॐ ॐ ॐ नमो नारायणाय…
असतो मा सद्गमय….
तमसो मा ज्योतिर्गमय….
मृत्योर्मा अमृतं गमय….
श्रीमन्महामहिम विद्यामार्तण्ड श्रीभागवतानंद गुरु
His Holiness Shri Bhagavatananda Guru