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राम और सीता का विवाह किस आयु में हुआ था ?

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विवाह के समय श्रीरामचन्द्र जी की आयु कितनी थी ?

पूर्वपक्ष (स्वामी सूर्यदेव) – श्रीराम का सीताजी से विवाह लगभग 24 वर्ष में हुआ था और उस समय मां सीताजी की आयु लगभग 16 वर्ष थी। प्रमाण के लिए वा. रा. अरण्य में सीताजी का रावण के साथ जो संवाद हुआ, उसमें से दो श्लोक रख रहा हूँ।
1:- उषित्वा द्वा दशसमः इक्ष्वाकुुणाम निवेशने,
भुंजानां मानुषान भोगतसेवकाम समृद्धिनी।।
अर्थात् – इसमें सीताजी रावण से कहती हैं कि इक्ष्वाकु कुल के राजा (दशसमः) अर्थात दशरथ के यहां दो वर्षों में उन्हें हर प्रकार के वे सुख जो मानवों के लिए उपलब्ध हैं, मुझे प्राप्त हुए। इसका मतलब है विवाह के बाद दो वर्ष अयोध्या/ससुराल में रहीं सीताजी।
अब दूसरा श्लोक देखिए-
ममभर्ता महातेजा वयसा पंचविंशक,
अष्टादश हि वर्षिणी नान जन्मनि गण्यते (अरण्य)
अर्थात इस श्लोक में माँ सीता रावण से कहती हैं कि वनवास प्रस्थान के समय मेरे तेजस्वी पति की आयु पच्चीस वर्ष थी और उस समय जन्म से मैं अठारह वर्ष की थी। अतः विवाह की आयु श्री राम जी की लगभग 23-24 वर्ष और सीताजी 16 वर्ष।

अन्य उदाहरण से स्पष्ट करें….
उनषोडशवर्षो मे रामो राजीवलोचन:।
न युद्धयोग्य्तामास्य पश्यामि सहराक्षसौ॥
(वाल्मीक रामायण /बालकाण्ड /सर्ग २०, श्लोक २)
क्योंकि भगवान राम ऋषि विश्वामित्र के साथ चौदह से सोलह वर्ष की उम्र में गए थे और उसके बाद ही उनका विवाह हुआ था। इससे यह सिद्ध होता है कि प्रभु श्रीराम का विवाह सोलह वर्ष के उपरान्त हुआ था।

उत्तरपक्ष (निग्रहाचार्य श्रीभागवतानंद गुरु) – आर्य समाजी श्लोकों को तोड़मरोड़ कर मनमाने ढंग से प्रस्तुत करने हेतु कुख्यात हैं। आपके द्वारा प्रस्तुत श्लोकों की वर्तनी व्याकरण एवं पाठ की दृष्टि से अशुद्ध है अतएव इनका शुद्ध अर्थ लगाना सम्भव नहीं है। सीताजी के द्वारा कहे गए श्लोक में ‘द्वा दशसमः’ शब्द नहीं, ‘द्वादशसमाः’ है। समाः वर्ष के बहुवचनार्थ में है तथा द्वादश शब्द के साथ युक्त है। सही श्लोक है –

उषित्वा द्वादश समा इक्ष्वाकूणां निवेशने।
भुञ्जानान्मानुषान्भोगान्सर्वकामसमृद्धिनी॥

इस श्लोक का अर्थ है कि – “मैंने इक्ष्वाकुवंशियों के घर (अयोध्या) में मानवोचित सुखों का उपभोग करते हुए बारह वर्ष व्यतीत किये। यहाँ दश शब्द का अर्थ दशरथ लगाना बहुत अधिक हास्यास्पद है। द्वादशसमाः शब्द है, जिसका अर्थ है – बारह वर्ष। इस अर्थ की संगति ठीक अगले श्लोक से लग जायेगी, जहाँ सीताजी कहती हैं –

ततस्त्रयोदशे वर्षे राजामन्त्रयत प्रभुः।
अभिषेचयितुं रामं समेतो राजमन्त्रिभिः॥

अर्थात् – उसके बाद ‘तेरहवें’ वर्ष में राजा (दशरथ) ने राजमन्त्रियों के साथ मिलकर रामजी का राज्याभिषेक करने की मन्त्रणा की।

इस दोनों श्लोकों की टीका में रामायणभूषणकार श्रीगोविन्दराज जी स्पष्ट करते हैं – द्वादशसमाः – द्वादशवत्सरानुषित्वा अर्थात् – बारह वर्ष रहकर। यहाँ द्वा का अर्थ दो एवं दशसमा का अर्थ दशरथ लगाना घोर आर्यसमाजी शैली का अज्ञान है। अब अगले प्रमाण की समीक्षा करते हैं, जिसमें भी आपने अशुद्ध वर्तनी का श्लोक लिखा है। शुद्ध श्लोक यह है, जिसमें भगवती सीताजी कहती हैं –

मम भर्ता महातेजा वयसा पञ्चविंशकः।
अष्टादश हि वर्षाणि मम जन्मनि गण्यते॥

अर्थात् – मेरे महान् तेजस्वी पति की अवस्था पच्चीस वर्ष की थी और मेरे जन्म से मेरी अवस्था अठारह वर्ष की थी। यहाँ द्वादश में द्वा को अलग करके दो वर्ष समझना, दश का अर्थ दशरथ कर देना और अठारह में उसे घटाकर सोलह कर देना व्याकरण की अपुष्टता दिखाता है।

पूरे प्रसङ्ग को देखें तो वहाँ यह श्रीराम जी के वनवास में जाने का कारण बता रही हैं। गोविन्दराज जी ने रामायणभूषण में लिखा है – वयः परिमाणं वननिर्गमनकालिकम्। यह अवस्था वन में जाने के समय की है। आगे लिखते हैं – सीतायाश्च भूगर्भादाविर्भावानन्तरं मिथिलायां षट्संवत्सरास्ततो विवाहानन्तरमयोध्यायां द्वादश इत्येवमष्टादश वर्षा गता। सीताजी के भूमि से निकलने के बाद 6 वर्ष मिथिला में बीते और विवाह के बाद अयोध्या में बारह वर्ष व्यतीत हुए, ऐसे कुल अठारह वर्ष की अवस्था में वनवास हुआ।

मारीच ने अरण्यकाण्ड में रावण को कहा है कि जब विश्वामित्र जी राजा दशरथ के पास रामजी की याचना करने गए थे तो राजा दशरथ ने कहा –

ऊनद्वादशवर्षोऽयमकृतास्त्रश्च राघवः॥

मेरा पुत्र राघव उनद्वादश (बारह से कम) वर्ष का एवं अस्त्रज्ञान में अपरिपक्व है।

यद्यपि मारीच का यह कथन उतना सही नहीं है, क्योंकि वह उस घटना का प्रत्यक्षदर्शी नहीं था, अपितु सुनी सुनायी बात कह रहा था। वस्तुतः राजा दशरथ ने कहा था –

ऊनषोडशवर्षो मे रामो राजीवलोचनः।
न युद्धयोग्यतामस्य पश्यामि सह राक्षसैः॥
(रामायण, बालकाण्ड, सर्ग – २०, श्लोक – ०२)

मेरा पुत्र कमलनयन राम उनषोडश (सोलह से कम) वर्ष का है। मैं नहीं समझता कि यह राक्षसों से युद्ध करने योग्य है।

इस प्रकार सिद्ध होता है कि श्रीराम जी की अवस्था विवाह के समय सोलह वर्ष से कम की थी एवं सीताजी छः वर्ष की थी। विवाह के बाद दोनों अयोध्या में बारह वर्ष तक रहे एवं क्रमशः पच्चीस तथा अठारह वर्ष की अवस्था में उन्हें वनवास मिला। हाँ, सन्तान की प्राप्ति उन्हें रामजी के चालीस वर्ष होने (रावण वध के बाद) पर ही हुई थी।

राजा ने कहा कि सोलह से कम वर्ष है मेरे पुत्र का। सोलह वर्ष को यौवन का प्रारंभ मानते हैं, अभी युवा नहीं हुआ है। बारह वर्ष की अवस्था में रामजी विश्वामित्र के साथ गए थे।

रामस्य जन्मारभ्य द्वादशे वर्षे विश्वामित्रागमनम्। तदनन्तरं वैदेह्या सह नगरे द्वादशवर्षाणि वासं कृतवान्। ततः परं त्रयोदशे वर्षे यौवराज्याभिषेकारम्भः। ततश्च वनप्रवेशसमये रामः पञ्चविंशतिवर्षार्हः।
(रामायणभूषण)

रामजी के जन्म से बारहवें वर्ष में विश्वामित्र आये। फिर राम जी बारह वर्ष और सीताजी के साथ अयोध्या में रहे और तेरहवें वर्ष में उन्हें युवराज बनाने की बात हुई तो कुल पच्चीस वर्ष की उनकी अवस्था वनगमन के समय थी। बहुत से लोग आधुनिक विवाह आयु के अनुसार इस बात को पचा नहीं पा रहे, और इस बात पर आपत्ति एवं अविश्वास कर रहे हैं, कह रहे हैं कि ऐसा कैसे हो सकता है, वे स्मरण रखें कि सीताजी अयोनिजा थीं, भूमि से प्रकट हुईं और भूमि में ही लीन हो गयी थीं। सामान्य व्यक्ति के नियम और परिवर्तनशील कानून के अनुसार वे नहीं चलते। अग्निप्रवेश के बाद भी उन्हें कुछ नहीं हुआ। मानवीय दृष्टि से अमानवीय तत्त्वों की समीक्षा नहीं की जा सकती।

देखिए, बात ऐसी है कि विवाह के समय श्रीराम जी बारह और सीताजी छः वर्ष के ही थे। लेकिन राम जी 55 वर्ष के नहीं थे और सीताजी उनके मित्र की पुत्री नहीं थी। श्रीराम जी ने सीताजी से उनकी, उनके मातापिता, अपने मातापिता, अपने गुरुदेव और अन्य की सहमति से, वीर्यशुल्क स्वयंवर के माध्यम से निश्चित मानक का पराक्रम सिद्ध करके विवाह किया था। और वे सीताजी के नौ वर्ष के होने पर सन्तान उत्पन्न करने नहीं लग गये थे, सन्तान का प्रसङ्ग तो रावण वध के बाद आता है।

जो आर्यसमाजी रामायण के अगले पिछले श्लोकों को छिपाकर, समास को तोड़कर बिल्कुल विपरीत अर्थ करके सीताजी को विवाह के समय सोलह वर्ष का सिद्ध करने का कुप्रयास कर रहे हैं, ताकि म्लेच्छजन इनपर आरोप न लगाएं, उनसे मैं कहूंगा कि यदि परम्परा से शास्त्रों का अध्ययन न हो तो चुप रहें। “बिल्कुल चुप रहें”। आपके दयानंद सरस्वती तो 24 वर्ष की कन्या का विवाह 48 वर्ष के पुरुष के साथ करवा रहे थे, आपके ही साहित्य कहते हैं। इसीलिए सनातन धर्म और उसके शास्त्रों में कुछ न बोलें। भारत में जितनी लड़कियां लव जिहाद का शिकार हो रही हैं, उनमें 90% आर्य समाज का ही हाथ है, यही संस्था सबका विवाह करा रही है।

यहाँ किस शब्द का अर्थ इस मूर्ख ने ‘”जब हमारा विवाह हुआ” ऐसा किया है ? और ये श्लोक तो बाद में आया है, जब वे रामजी के वनवास के वर्णन कर रही हैं। ये आर्य समाजी स्वयं हमारे ग्रन्थों का गलत अर्थ करते हैं, मनमाना छेड़छाड़ और व्यतिक्रम करते हैं और प्रामाणिक श्लोकों को कहते हैं कि ये मिलावट है। इस धूर्त आर्य समाजी जगदीश्वरानन्द की करामात देखें। दसवें श्लोक को छठे स्थान पर देकर उसमें जबरन “जब हमारा विवाह हुआ” घुसाया है। आर्य समाज और इस्लाम में बस इतना ही भेद है कि इस्लाम ने सनातन धर्म को नष्ट करने के लिए तलवार उठायी और आर्य समाज ने कलम।

निग्रहाचार्य श्रीभागवतानंद गुरु
Nigrahacharya Shri Bhagavatananda Guru