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क्या बुद्ध भगवान् विष्णु के अवतार थे ?

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अजिनपुत्र ब्राह्मण महात्मा बुद्ध के अवतार होने के सन्दर्भ में पूर्व के कई आचार्य एवं विद्वान् बता चुके हैं, अतएव मैं उनके प्रमाणों पर अधिक चर्चा नहीं करूंगा। मैं वह बताऊंगा जो शेष आचार्यों ने गुप्त रखा। क्या कारण है कि महात्मा बुद्ध को लोग नहीं जानते और गौतम बुद्ध की प्रसिद्धि अधिक हो गयी ? क्या विष्णु भगवान् के अवतार की प्रसिद्धि कम हो, और लौकिक जनों की अधिक, ऐसा सम्भव है ? इसका कारण है कि गौतम बुद्ध भी भगवान् विष्णु के अवतार ही हैं एवं उनके बाद अभी तक कोई दूसरा बुद्ध नहीं आया है इसीलिए उनकी प्रसिद्धि विशेष है। नारद पांचरात्र एवं पद्मपुराण में वर्णित शिवप्रोक्त विष्णुसहस्रनाम के अंत में भगवान् का एक नाम शौद्धोदनि (शुद्धोदन पुत्र) भी आया है।

वर्तमान में कथित नवबौद्ध आदि बुद्ध के मूल सिद्धांत को न जानने के कारण घोर अनर्थ करते हैं | क्योंकि बुद्ध ने फोड़े को काट कर हटाया और शेष को सुरक्षित किया, लेकिन कथित बौद्धगण स्वस्थ देह का गला ही काट दे रहे हैं | वस्तुतः यह सब कुछ पूर्व नियोजित था कि सनातन में घुसपैठ किये म्लेच्छों को नास्तिक बौद्ध दर्शन का आश्रय लेकर विष्णु भगवान भ्रमित करके उन्हें सनातन से वापस दूर करेंगे तथा इस प्रक्रिया में जो भी कुछ सनातनियों में भ्रम व्याप्त होगा उसे बाद में उचित अवसर पाकर कुमार कार्तिकेय तथा भगवान शिव क्रमशः आचार्य कुमारिल भट्ट तथ आदिगुरु शंकराचार्य के रूप में आकर ठीक करेंगे | तो निष्कर्ष यह निकलता है कि बुद्ध निःसंदेह नारायण के अवतार हैं तथा उनका उद्देश्य तथा कर्तव्य सही था | बुद्ध सही थे, बौद्ध नहीं |

धर्मसम्राट् करपात्री स्वामी आदि ने इसीलिये गौतम बुद्ध को प्रत्यक्ष अवतरण नहीं माना क्योंकि अम्बेडकर के बौद्ध बन जाने से अंग्रेजों ने सवर्ण तथा दलित नाम का जो कथित विभाजन किया था, उसमे दलित जन सनातन विरोधी हो रहे थे। साथ ही वे यह भी मानते थे कि गौतम ही एक मात्र बुद्ध हैं। उससे पहले कोई बुद्ध नहीं हुआ। इसीलिए करपात्री जी ने गौतम को अवतरण नहीं मानने की दूरगामी नीति अपनायी ताकि लोग बाद में भ्रमित न हों। साथ ही उन्होंने अजिन पुत्र पर भी जोर दिया। यदि गौतम से विरोध होता तो आचार्य शंकर, आचार्य कुमारिल तथा आचार्य उदयन आदि, जो गौतम से कुछ ही समय बाद हुए थे, कभी न कभी कहीं न कहीं यह ज़रूर कहते कि अजिन पुत्र ही वास्तव में बुद्ध अवतार हैं। यह गौतम नाम का आदमी फ़र्ज़ी बुद्ध था। लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ। क्योंकि वे इस बात को अच्छे से जानते थे। आदिगुरु ने कभी गौतम के अवतार न होने की बात कही ? या ये कि वो फ़र्ज़ी बुद्ध है। एक मात्र अजन पुत्र ही बुद्ध हैं। और केवल वे ही अवतार हैं। कुमारिल भट्ट या आचार्य उदयन ने भी नहीं कहा। जबकि गौतम के सबसे निकट समकालीन बौद्ध खंडक तो वही लोग थे।

कारण मैं बता रहा हूँ। अम्बेडकर के बौद्ध बनने से सनातनियों का बड़ा वर्ग जो अंग्रेजों की कूटनीति का शिकार था, बुद्ध की ओर आकर्षित हुआ। यदि धर्मसम्राट जी जैसा अतिमान्य व्यक्तित्व यह कहता कि गौतम बुद्ध विष्णु के अवतार हैं तो बाकी सुधरे हुए सनातनियों में यह भ्रम होता कि विष्णु के कृष्ण और बौद्ध अवतार के उपदेश में इतनी विसंगति क्यों है। मूल उद्देश्य जो अवतारों का था, उससे वे परिचित तो थे नहीं। अब बुद्ध का मत भौतिकवादी है। मायाप्रधान है। बहुत लुभावना है, बहुत आकर्षक है। अतः यदि उन्हें विष्णु का अवतार कह देते तो लोग और तेजी से बुद्ध की ओर भागते। ये कह कर कि बौद्ध बनने से हमें भौतिकवाद का लाभ मिलेगा और लोग हमें गलत भी नहीं कहेंगे क्योंकि बुद्ध तो विष्णु के अवतार थे। अतः उन्होंने सीधा कह दिया कि गौतम बुद्ध विष्णु के अवतार ही नहीं है। यहाँ ध्यान दें कि नीति उन्होंने वही अपनायी जो विष्णु भगवान् ने बौद्धावतार में लगायी थी। ईश्वर के नाम पर अधर्म करने वालों को यह कह कर रोका कि ईश्वर ही नहीं है। इस प्रकर धर्मसम्राट करपात्री स्वामी जी ने सनातन का बहुत बड़ा वर्ग बचा लिया जो बौद्ध बनने जा रहे थे। अब जैसे हमारे हज़ारों जन्मों में हज़ारों माता पिता हुए, पर हमने उसी को प्रधानता दी, उसी से प्रभावित हुए जो सबसे अर्वाचीन है। वैसे ही सभी लोग अजन पुत्र की अपेक्षा गौतम से अधिक प्रभावित हुए।

अब गौतम का विरोध करने से ऐसे लोग, जो यह सोच रहे थे कि बौद्ध मत का लाभ लेंगे लेकिन धर्मभीरु होने से बौद्ध मत को भी सनातन ही मान रहे थे, यह कह कर कि गौतम बुद्ध विष्णु के अवतार हैं, अतः हम सही हैं, ऐसे लोगों पर विराम लग गया। लेकिन बौद्ध अवतार हुआ तो था, अतः उन्होंने अजन पुत्र को अवतार माना। इससे बुद्ध का विरोध हुआ भी, और नहीं भी हुआ। दोनों कार्य साध लिये। और वेदविरोधी होने से भगवान् का बुद्ध विग्रह श्रेष्ठ नहीं माना गया, अतः उनका विरोध भी पापकारक नहीं हुआ।

अब कीकट क्या है ? श्रीधर स्वामी ने कीकट का अर्थ मगध का मध्य या गया किया है। नालंदा के गृद्धकूट से मिर्जापुर के चुनार पास चरणाद्रि पर्वत तक कीकट है, ऐसा शक्तिसंगम तन्त्र का वचन है।

चरणाद्रिं समारभ्य गृध्रकूटान्तकं शिवे ।
तावत् कीकटदेशः स्यात् तदन्तर्मगधो भवेत्॥
(शक्तिसंगम तन्त्र)

अजिनपुत्र बुद्ध के अवतार के समय वाराणसी में महाराज किकी का शासन था और वे कीकट के भी राजा थे।

वैष्णव दशावतार में बुद्ध की चर्चा भी है।

मत्स्यः कूर्मो वराहश्च नारसिंहोऽथ वामनः॥
रामो रामश्च कृष्णश्च बुद्धः कल्की च ते दश॥
(भविष्यपुराण, उत्तरपर्व, अध्याय – १९०, श्लोक – ०६)

मत्स्यः कूर्मो वराहश्च नृसिंहो वामनस्तथा।
रामो रामश्च कृष्णश्च बुद्धः कल्की ततः स्मृतः।
एते दशावताराश्च पृथिव्यां परिकीर्तिताः॥
(पद्मपुराण, उत्तरखण्ड, अध्याय – ७१, श्लोक – २७)

दैत्यानां नाशनार्थाय विष्णुना बुद्धरूपिणा।
बौद्धशास्त्रमसत्प्रोक्तं नग्ननीलपटादिकम्॥
(पद्मपुराण, उत्तरखण्ड, अध्याय – २३६, श्लोक – ०६)

इस प्रकार कहीं कहीं बुद्ध की गणना दशावतार में है तो कहीं कहीं नहीं है। ऐसे ही कहीं कहीं बलरामजी की भी गणना है तो कहीं नहीं भी है। अतएव यह कहना कि बाद में जयदेव कवि ने बुद्ध का नाम मिला दिया, यह सर्वथा अशास्त्रीय है। भगवान् विष्णु की निम्न भविष्यवाणी देखें –

मया बुद्धेन वक्तव्या धर्माः कलियुगे पुनः।
हन्तव्या म्लेच्छराजानस्तथा विष्णुयशात्मना॥
(विष्णुधर्मोत्तरपुराण, खण्ड – ०३, अध्याय – ३५१, श्लोक – ५४)

मेरे द्वारा बुद्धरूप से कलियुग में (उप) धर्म का प्रवचन किया जाएगा एवं फिर विष्णुयशा के पुत्र (कल्कि) के रूप में म्लेच्छ राजाओं का वध किया जाएगा।

कुछ और शास्त्र प्रमाण देखें –
भविता सञ्जयश्चापि वीरो राजा रणञ्जयात्।
सञ्जयस्य सुतः शाक्यः शाक्याच्छुद्धोदनोऽभवत्॥
शुद्धोदनस्य भविता शाक्यार्थे राहुलः स्मृतः।
प्रसेनजित्ततो भाव्यः क्षुद्रको भविता ततः॥
(वायुपुराण, उत्तरार्ध, अध्याय – ३७, श्लोक – २८४-२८५)

रणंजय का पुत्र संजय होगा। संजय का पुत्र शाक्य और उससे शुद्धोदन होगा। शुद्धोदन का पुत्र शाक्य उपाधि लेकर राहुल को जन्म देगा। राहुल का पुत्र प्रसेनजित् और उसका पुत्र क्षुद्रक होगा। (गौतमबुद्ध की उपाधि शाक्यमुनि भी है)

बुद्ध पतन और उत्थान दोनों कराता है, इसका एक संकेतात्मक वर्णन देखें –

बुद्धं प्रतीदं ब्रह्मैव केवलं शान्तमव्ययम्।
अबुद्धं प्रति बुद्ध्यैतद्भासुरं भुवनान्वितम्॥
सर्गस्तु सर्गशब्दार्थतया बुद्धो नयत्यधः।
स ब्रह्मशब्दार्थतया बुद्धः श्रेयो भवत्यलम्॥

(योगवासिष्ठ महारामायण, स्थितिप्रकरण, सर्ग – ०३, श्लोक – १६ एवं २३)

जो व्यक्ति बुद्ध हो गया है, उसके लिए ब्रह्म का अनुभव शांत एवं अव्ययरूप में होता है। जो बुद्ध नहीं है, वह केवल प्रकाशित संसार को ही देखता है। यदि केवल संसार को संसार ही मान ले (नास्तिक बुद्धि से) तो यह बुद्धत्व उसका पतन कर देता है। यदि संसार में ब्रह्मरूप का दर्शन करे तो बुद्ध का कल्याण होता है, इतनी सी बात है।

धर्मराज युधिष्ठिर को अवतारों का वर्णन करते हुए ऋषि मार्कण्डेय कहते हैं –
मत्स्यः कूर्मो वराहश्च नरसिंहोऽथ वामनः।
रामो रामश्च कृष्णश्च बुद्धः कल्किश्च ते दश ॥
तथा बुद्धत्वमपरं नवमं प्राप्स्यतेऽच्युतः ।
शान्तिमान्देवदेवेशो मधुहन्ता मधुप्रियः ॥
तेन बुद्धस्वरूपेण देवेन परमेष्ठिना ।
भविष्यति जगत्सर्वं मोहितं सचराचरम् ॥
(स्कन्दपुराण, अवन्तीखण्ड-रेवाखण्ड, अध्याय – १५१, श्लोक – ०४ एवं २१-२२)

मत्स्य, कूर्म, वराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, श्रीराम, श्रीकृष्ण, बुद्ध एवं कल्कि ये दस अवतार हैं। नवें अवतार के रूप में भगवान् अच्युतदेव (विष्णु) का बुद्धरूप से आगमन होगा। मधुदैत्य का नाश करने वाले, वसन्तप्रिय (कामरूपी) भगवान् का वह रूप शान्त होगा। उन परमदेव के उस रूप के द्वारा सम्पूर्ण संसार मोहित हो जाएगा।

ऋषिप्रणीत ज्यौतिषीय ग्रंथों में भी देखें –
रामः कृष्णश्च भो विप्र नृसिंहः सूकरस्तथा।
एते पूर्णावताराश्च ह्यन्ये जीवांशकान्विताः॥
अवताराण्यनेकानि ह्यजस्य परमात्मनः।
जीवानां कर्मफलदो ग्रहरूपी जनार्दनः॥
दैत्यानां बलनाशाय देवानां बलबृद्धये।
धर्मसंस्थापनार्थाय ग्रहाज्जाताः शुभाः क्रमात्‌॥
रामोऽवतारः सूर्यस्य चन्द्रस्य यदुनायकः।
नृसिंहो भूमिपुत्रस्य बुद्धः सोमसुतस्य च॥
वामनो विबुधेज्यस्य भार्गवो भार्गवस्य च।
कूर्मो भास्करपुत्रस्य सैंहिकेयस्य सूकरः॥
केतोर्मीनावतारश्च ये चान्ये तेऽपि खेटजाः।
परात्मांशोऽधिको येषु ते सर्वे खेचराभिधः॥
(बृहत्पाराशर होराशास्त्र, अध्याय ०२, श्लोक – ०२-०७)

हे ब्राह्मणों ! राम, कृष्ण, नृसिंह एवं वाराह ये चार पूर्णावतार हैं। अन्य अवतारों में कुछ जीवांश भी विद्यमान् है। अजन्मा परमात्मा के अनेकों अवतार हैं। जीवों को उनका कर्मफल देने के लिए भी भगवान् जनार्दन ग्रहरूप से आते हैं। दैत्यों के बल का नाश करने के लिए, एवं देवताओं के बल को बढ़ाने के लिए, धर्म की स्थापना के लिए क्रम से शुभ ग्रहों का निर्माण हुआ है। श्रीरामावतार सूर्य हैं, चन्द्रमा श्रीकृष्ण हैं। नृसिंह मङ्गल एवं बुद्धावतार बुध हैं। वामन बृहस्पति हैं एवं परशुरामावतार शुक्र हैं। कूर्मावतार शनि और वाराह राहु हैं। केतु मत्स्यावतार हैं और भी अन्य जो आकाशीय पिंड हैं, उनमें परमात्मा का ही अंश है।

आपको स्मरण होगा कि मैंने भविष्य पुराण के प्रमाण से यह सिद्ध किया था कि इन्द्रादि ने बुद्धावतार लेकर वेदनिन्दा की, जिससे उन्हें कुष्ठ हो गया और भगवान् विष्णु ने अपने योगबल से उन्हें स्वस्थ किया। अब हम विलुप्तप्राय मुद्गल पुराण के एक प्रमाण को देखते हैं। ब्रह्मा की प्रार्थना पर (इन्द्रादि के इस अवतार के बाद) भगवान् विष्णु ने जब बुद्धावतार का निर्णय किया तो वेदनिन्दा से होने वाले अधर्म का उन्हें भय हुआ। उन्हें लोगों के वैदिक कृत्यों में विघ्न डालना था इसीलिए वे विघ्नराज गणेश जी की तपस्या करने लगे। भगवान् विष्णु की तपस्या से प्रसन्न होकर गणेश्वर में उन्हें वरदान मांगने को कहा, तो भगवान् विष्णु ने निम्न बात कही –

भक्तिं देहि त्वदीयां मे सर्व सिद्धिप्रदायिनीम्।
बुद्धोऽहं धर्मलोपार्थं भविष्यामि कलौ युगे॥
धर्मसंस्थापनं नित्यं करोमि गणनायक।
धर्मलोपार्थमेवाहं त्वया बुद्धः प्रकीर्तितः॥
एतदेव विरुद्धं मे प्राप्तं ढुंढ़े दयानिधे।
तदर्थं शरणं नाथ यातोऽहं ते पदस्य च॥

हे नाथ ! सर्वप्रथम तो आप मुझे सभी सिद्धियों के देने वाली अपनी भक्ति का वरदान दें। मैं धर्म के लोप हेतु कलियुग में बुद्ध का अवतार लूंगा। मेरे सभी अवतार धर्म की स्थापना के लिए ही होते हैं और अब मुझे आपकी आज्ञा से धर्म के विनाश के लिए बुद्ध बनना है। इस विरोधाभास के कारण मैं आपके चरणों की शरण में आया हूँ।

भगवान् विष्णु की बात सुनकर परब्रह्मरूपी गणेश्वर ने कहा –

मा भयं कुरु विष्णो त्वं धर्मयुक्तो भविष्यसि।
कलिप्रवर्तने दोषो न ते क्वापि महात्मनः॥
मया चतुर्युगा: खेलाद्रचिताः क्रमकारणात्।
वरदानेन मे सर्वे स्वस्वकालयुता बभु:॥
कलिस्तेषु महापापी मया संस्थापितोऽभवत्।
मदाज्ञापालको भूत्वा भव बुद्धस्त्वमादरात्॥

हे विष्णो ! आप भय न करें, आप धर्म से युक्त ही रहेंगे। कलियुग को बढ़ावा देने के कारण आप जैसे महात्मा को कोई दोष नहीं लगेगा। मेरे ही द्वारा खेल खेल में क्रम से चारों युग बनाये गए हैं, और मेरे ही वरदान से अपने अपने कालविभाजन से वे युक्त हैं, इनमें महापापी कलियुग की भी स्थापना मैंने की है। इसीलिए मेरी आज्ञा को मानकर आप आदरपूर्वक बुद्धरूप धारण करें।

सर्वान् सम्मोह्य विश्वात्मा बुद्ध: कलिप्रवर्तकः।
संस्थितः कैकटे देशे गुप्तरूपेण मानदः॥

हे विश्वात्मन् ! आप कलियुग को बढ़ाने वाला बुद्धरूप धारण करके सबों को मोहित करें एवं कीकट देश में गुप्तरूप से स्थित हों। (गुप्त इसीलिए, ताकि उनके विष्णु होने का बोध छिपा रहे)

तथापि पूजया हीनो बभूव बुद्धरूपधृक्।
विष्णुर्वेदविरुद्धस्थमार्गसंसर्जनात्किल॥

(मुद्गल पुराण, खण्ड – ०८, अध्याय – १५)

वेदविरुद्ध मार्ग की स्थापना के कारण भगवान् विष्णु बुद्धरूप में पूजा से रहित हुए, उनकी पूजा वर्जित है।

यह अवतार अजिनपुत्र बुद्ध के रूप में हुआ था। जहां गौतम बुद्ध का अवतार वैशाख पूर्णिमा में हुआ था, और महात्मा बुद्ध का अवतार कुछ के मत से माघ में हुआ था। कुछ विद्वान् बुद्धावतार का प्रमाण विजयादशमी के दिन से दैते हैं तो कुछ कहते हैं कि शुक्लपक्ष की दशमी में जब विशाखा नक्षत्र और रविवार था तब दिन के छः घड़ी बीतने पर बुद्धावतार हुआ। शुक्ल दशमी और विशाखा का योग आषाढ़ के महीने में बहुधा बनता है।

शुद्धा च दशमी देवि रविवारेण संयुता।
शुक्लयोगे विशाखायां दिवा नाड़ी च षट् तदा।
बुद्धोऽवतीर्णो देवेशि ततः कलियुगे शृणु॥
(शक्तिसंगम तन्त्र, छिन्नमस्ताखण्ड, षष्ठ पटल, श्लोक – ६६)

अब तन्त्र में बुद्ध की उपासना का एक वर्णन मिलता है।

अथातः संप्रवक्ष्यामि बौद्धमन्त्रं महाफलम्।
सभ्यत्वान्न द्विजातीनामधिकारोस्ति कर्हिचित्॥
वाममार्गरत विप्राः कुण्डका जातिविच्युताः।
हीना वैदिकसंस्कारै: प्रमादान्म्लेच्छतां गताः॥
गोलकाश्च तथा जात्या कायस्थादय एव च।
बौद्धं विष्णुं समाराध्य भुक्तिं मुक्तिं प्रयान्ति ते॥
पतितानामयं मन्त्रः सम्प्रोक्तः सुखदायकः।
नमो भगवते बुद्ध संसारार्णवतारक।
कलिकालादहं भीतः शरण्यं शरणं गतः॥

भगवान् ईश्वर कहते हैं – अब मैं महान् फल को देने वाले बुद्धावतार का मन्त्र कहता हूँ। सभ्य (वेदाधिकार से युक्त) द्विजाति के लिए इसे करने का अधिकार नहीं है। वाममार्गी (अवैदिक) ब्राह्मण, जाति से बहिष्कृत या च्युत, वैदिक संस्कार से हीन (व्रात्य), आलस्य के कारण म्लेच्छवृत्ति को अपनाने वाले कुण्डक, गोलक आदि वर्णसंकर एवं कायस्थ आदि (कायस्थों के आठ प्रकार में चार वैदिक मार्ग में अधिकृत हैं और चार अवैदिक मार्ग में, उसमें अवैदिक मार्ग वाले कायस्थ) बुद्धरूप से विष्णु की आराधना करके इस संसार में सुख और आगे मुक्ति को प्राप्त करते हैं। पतितों को यह मन्त्र सुखदायी बताया गया है।

मन्त्र – नमो भगवते बुद्ध संसारार्णवतारक।
कलिकालादहं भीतः शरण्यं शरणं गतः॥

भगवान् बुद्ध के लिए प्रणाम है। संसार रूपी समुद्र से पार करने वाले ! मैं कलिकाल से भयभीत होकर आपको रक्षक मानता हुआ आपकी शरण में आया हूँ।

आगे बुद्ध सम्बन्धी यंत्र में कहते हैं –
कामिनीं च महामायां श्रीकृष्णं च विनायकम्।
समन्तभद्रं वर्त्मर्षिं निधिचन्द्रं मनोहरम्॥
(मेरुतन्त्र, दशावतारमन्त्रप्रकाश २६वां पटल)

कामिनी, महामाया (बुद्धमाता), श्रीकृष्ण (यमारि), विनायक, समन्तभद्र (गौतम बुद्ध की एक उपाधि) एवं निधिचन्द्र का पूजन करे। गौतम बुद्ध के जन्म के साथ ही चार निधिकुम्भ भी प्रकट हुए थे ऐसा बौद्ध ग्रंथों में वर्णन है। इस प्रकार भगवान् विष्णु का शुद्धोदनपुत्र गौतम बुद्ध के रूप में अवतार सिद्ध होता है।